जानिए गरुड़ पुराण और गीता में मांस खाने के बारे में क्या लिखा है । मांस खाना पुण्य है या पाप

आज के इस सनातन धर्म के युग में कई लोग ग्रंथ, वेद, शास्त्रों और पुराणों से अनजान है। जिसका उचित ज्ञान ना होने के कारण वर्तमान में कुछ गलतियां करते हैं।आज इस पोस्ट के माध्यम से गीता में मांस खाने के बारे में क्या लिखा है, क्या मांस खाना सही है? तथा गरुड़ पुराण के अनुसार मांस खाना पुण्य है या पाप ? आदि विषयों के बारे में जानकारी बताई गई है। यह जानकारी ग्रंथ, वेद और शास्त्रों में लिखित अध्याय और श्लोक के आधार पर विस्तारित की गई है जो कि पूर्ण रूप से सच है। तो आइए जानते हैं geeta main mas khane ke bare me kya likha hai तथा गरुड़ पुराण के अनुसार मांस खाना पुण्य है या पाप हिंदी जानकारी

गीता में मांस खाने के बारे में क्या लिखा है, गरुड़ पुराण के अनुसार मांस खाना पुण्य है या पाप
गीता में मांस खाने के बारे में क्या लिखा है

    जानिए हिन्दू धर्म में मांस खाना पुण्य है या पाप 

    भगवद गीता, हिंदू धर्म के सबसे प्रतिष्ठित ग्रंथों में से एक है। गीता सिखाती है कि प्रत्येक जीवित प्राणी में एक आत्मा होती है, और यह आत्मा जीवित और शाश्वत (श्वास लेती) है। इस प्रकार, सभी जीवित प्राणियों को पवित्र माना जाता है और उनके साथ श्रद्धा और सम्मान के साथ व्यवहार किया जाना चाहिए। गीता अहिंसा के सिद्धांत पर भी जोर देती है, जिसे हिंदू धर्म में सर्वोच्च गुणों में से एक माना जाता है। एसे मे  हिन्दू धर्म में मांस खाना  यह घोर पाप करने के समान होता है।

    मांस का सेवन करना यह अहिंसा के सिद्धांतों और सभी जीवित प्राणियों के सम्मान के खिलाफ है। भोजन के लिए पशुओं को पालने और मारने की प्रक्रिया में हिंसा और पीड़ा शामिल है, इसके आलावा  मांस की खपत तथा बिक्री करना यह हिंसा के इस चक्र को कायम रखती है। 

    1. गीता में मांस खाने के बारे में क्या लिखा है

    अक्सर लोग भगवत गीता के मार्ग पर चलना चाहते है, परंतु वेह कुछ बातों से आज भी अज्ञात है। जैसे की  “क्या मांस खाना सही है” तथा "गीता में मांस खाने के बारे में क्या लिखा है" इस बात से आज भी कई लोग अनजान है। भगवद गीता, यह एक पवित्र हिंदू शास्त्र है, जो स्पष्ट रूप से मांस की खपत तथा मांस का सेवन करने वाले व्यक्ति को बढ़ावा नहीं देता है। सरल भाषा में कहा जाये तो भगवद गीता में इस बात का स्पष्ट उल्लेख किया है की किसी भी प्रकार के जानवर, जलचर, तथा पंछियों के मांस का सेवन का करना यह अपवित्र है। हालांकि,भगवद गीता सभी जीवित प्राणियों के लिए अहिंसा और सम्मान के महत्व पर जोर देता है। आज भी कुछ लोग गीता को अपनाते हुए शाकाहारी भोजन की वकालत के रूप में भगवत गीता की व्याख्या करते हैं। गीता में लिखित अध्याय और श्लोक के आधार पर गीता में मांस खाने के बारे में क्या लिखा है यह विस्तार से समझते है।

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    गीता में मांस खाने के बारे में क्या लिखा है


    भगवत गीता अध्याय 17, श्लोक 8

    आयु: सत्वबलारोग्यसुखप्रीतिविवर्धना: |

     रस्या: स्निग्धा: स्थिर ह्रदय आहारा: सात्त्विकप्रिया: || 8||

    अर्थात:

    गीता में मानव जीवन काल को बढ़ावा देने के लिए भोजन की चर्चा की है: भोजन इस प्रकार का होना चाहिए जो बल, अच्छाई,  खुशी और संतुष्टि को बढ़ावा देता है। इस सूची में शामिल खाद्य पदार्थों में आप अनाज, दालें, बीन्स, फल, सब्जियां, दूध जैसे विभिन्न प्रकार के शाकाहारी आहार मिलेंगे, ये खाद्य पदार्थ अत्यंत स्वादिष्ट, रसदार, रसीले और पौष्टिक होते हैं जो स्वाभाविक रूप से शारीरिक स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद होते हैं।

    संवाद:

    कुछ लोग यह समझते हैं कि मांस उस भोजन की श्रेणी में आता है जो संतुष्टि को बढ़ावा देता है, जो कि सरासर गलत है। इसमें जानवरों की हिंसा करना, जानवरों को नुकसान पहुंचाना और उन्हें मारना शामिल है, जिसके कारण यह अज्ञानता को बढ़ावा  देता है। खुद के स्वार्थ के लिए मांस भक्षण करना यह सरासर एक हत्या है,  जिससे किसी प्रकार की संतुष्टि प्राप्त नही होती है।

    भगवत गीता अध्याय 17 श्लोक नंबर 10

    यतयामं गतरसं पूति पर्युषितं च यत् |

    उच्छिष्टमपि चामेध्यं भोजनं तामसप्रियम् || 10||

    अर्थात: 

    स्वस्थ जीवन जीने के लिए, हमें आधा पका या बासी, सड़ा हुआ, दूषित और अशुद्ध भोजन से दूर रहना चाहिए। यह भोजन केवल तमोगुणी व्यक्तियों को प्रिय होते हैं।

    [ तमोगुणी व्यक्ति मतलब:  शराब व्यसन तथा हर समय वासना, सम्भोग आदि बुराइयों से घेरा हुआ व्यक्ति ]

    संवाद:

    श्री कृष्ण जी ने अपनी भागवत गीता में शरीर के भलाई के लिए स्वस्थ आहार खाने का महत्व बताया है।किसी भी जिव के मरने के बाद तथा हत्या करने के बाद उसका शरीर अशुद्ध, दुर्गंधित होता है और सड़ने लगता है, एसेमे मांसाहारी भोजन करना यह एक अपवित्रता है। श्री कृष्ण जी स्वस्थ रहने के लिए स्वस्थ आहार का सेवन करने की बात करते हैं जो मांस के अलावा सभी प्रकार के शाकाहारी खाद्य पदार्थों, फलों और सब्जियों को शामिल करता है।

    2. गरुड़ पुराण के अनुसार मांस खाना पुण्य है या पाप

    गरुड़ पुराण यह अठारह प्रमुख हिंदू पुराणों में से एक है जो हिंदू दर्शन, धर्मशास्त्र और पौराणिक कथाओं के विभिन्न पहलुओं का वर्णन करता है। गरुड़ पुराण में, धर्म (धार्मिकता) और अधर्म (अधर्म), आत्मा की प्रकृति, परलोक, और किसी के कार्यों के परिणामों सहित विभिन्न विषयों के बारे में बताया गया है।

    एसेमे गरुड़ पुराण के अनुसार मांस खाना पुण्य है या पाप यह कैसे जाने, आपको बता दे गरुड़ पुराण, अन्य हिंदू शास्त्रों की तरह, अहिंसा के सिद्धांत को महत्वपूर्ण पहलू के रूप में मान्यता देता है। गरुड़ पुराण भी स्वीकार करता है कि भोजन के लिए जानवरों की हत्या में हिंसा शामिल है। अहिंसा की अवधारणा में जानवरों तथा किसी भी जीवित प्राणी को नुकसान पहुँचाना यह पाप करने समान है। गरुड़ पुराण के अनुसार मांस खाना पुण्य है या पाप इसका वर्णन गरुड पुराण में बताई गई कहानी द्वारा किया गया है।

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    गरुड़ पुराण के अनुसार मांस खाना पुण्य है या पाप


    गरुड़ पुराण मांस के बारे में श्री कृष्ण द्वारा बताई गई कहानी 

    एक बार श्री कृष्णा पेड़ के नीचे बैठकर बांसुरी बजा रहे थे, तभी एक “हिरण” शिकारी से बचता हुआ आता है और श्रीकृष्ण के पीछे छुप जाता है। तब “शिकारी” भगवान श्री कृष्ण को हिरन वापस लेने की जिद करता है, ताकि वह शिकारी अपने परिवार का पेट पाल सकें। तब श्री कृष्ण कहते हैं  की “तुम इस हिरन की हत्या करके खुद को पाप के भागीदार बना रहे हो”। तब शिकारी कहता है मैं तो अज्ञानी हूं मुझे पाप और पुण्य में कुछ अंतर समझ नहीं आता है। एसेमे  भगवान श्री कृष्णा एक शिकारी को कहानी सुनाते हुए शुरुआत करते हैं कि…......

    एक बार एक नगरी में मौसम में अकाल पड़ने के कारणवर्ष उत्पादन कम हो गया था। तब वह के राजा को प्रजा के पोषण पानी की चिंता होने लगी। तब राजा,  सभा में मौजूद सभी मंत्री महोदय से कहते हैं “ भोजन बनाने के लिए सबसे सस्ती चीज क्या हो सकती है” तभी शिकार करने वाले कुछ मंत्री कहते हैं कि यदि हम शिकार करें तो मांस हमें आसानी से प्राप्त हो सकता है, जिससे धन भी पर बात नहीं होगा और समय की भी बचत होगी। राजा को भी यह फैसला पसंद आता है परंतु तभी एक ज्ञानी प्रधानमंत्री उठकर यह बात काटने लगता है कि “सबसे सस्ता भोजन, मांसाहार है! यह बात मैं नहीं मानता” और इस बात को मैं कल साबित करके बताऊंगा।

    प्रधानमंत्री एक योजना बनाते हैं, और योजना के अनुसार प्रधानमंत्री उन मंत्रियों के घर में जाते हैं जो शिकार करते है। योजना के अनुसार प्रधानमंत्री उनसे कहते हैं की “राजा की तबीयत बहुत खराब है, और वैद्य जी के अनुसार यदि किसी शिकार करने वाले व्यक्ति के  हृदय का थोड़ा मांस मिल जाए तो राजा की जान बच सकती है”। यह सुनकर मंत्री घबरा जाता है, और प्रधानमंत्री के पैर पकड़ कर रोता हुआ कहता है कि “आप यह धन की पोटली  ले लो, परंतु मेरी जान बख्श दो”। प्रधानमंत्री पैसे की पोटली लेकर वहां से निकल जाते है और बारी-बारी सभी मंत्रियों के घर से धन की पोटली जमा करता हुए अगले दिन राजा की सभा में प्रस्तुत होते है। और राजा को मंत्रियों के बारे में की गई योजना की पूरी बात बताते है, और कहते हैं कि “किसी भी व्यक्ति के शरीर के मांस पर केवल उनका अधिकार है“। यह बात बोल कर  प्रधानमंत्री “धन की पोटली” राजा को देता है, जिससे राजा  अन्य राजाओं से अनाज की खरीदी करके राजा की भूख मिटाता है। इसके अलावा मांसाहार को बढ़ावा देकर राजा अपनी बुद्धि भ्रष्ट कर रहा था इस बात का उसे एहसास होता है।

    सिख: श्री कृष्ण द्वारा बताई गई इस कहानी द्वारा हमें यह सीख मिलती है कि “किसी भी जीव और  जानवर पर केवल उनका अधिकार है, तथा किसी भी जीव और जानवर की हत्या करना यह पाप और हिंसा के समान होता है”  

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    3. अर्थवेद में मांस के बारे में क्या कहा गया है

    अर्थवेद हिंदू धर्म का एक प्राचीन ग्रंथ है जिसमें जीवन के विभिन्न पहलुओं पर ज्ञान का खजाना है। इसके एक अंश में, यह एक संतुलित और दयालु आहार के महत्व पर जोर देता है जिसमें किसी भी जीवित प्राणी के प्रति हिंसा शामिल नहीं है।

    अथर्ववेद 6 / 140 / 2

    व्री॒हिम॑त्तं॒ यव॑मत्त॒मथो॒ माष॒मथो॒ तिल॑म्। 

    ए॒ष वां॑ भा॒गो निहि॑तो रत्न॒धेया॑य दन्तौ॒ मा हिं॑सिष्टं पि॒तरं॑ मा॒तरं॑ च ॥


    अर्थात : 

    अर्थवेद के अनुसार, मनुष्य को ऐसे भोजन का सेवन करना चाहिए जो उनके सेहत के स्वास्थ्य और कल्याण के लिए फायदेमंद हो, जैसे कि चावल, गेहूं, तिल और उरद दाल। ये पौधों पर आधारित खाद्य पदार्थ बिना किसी जानवर को नुकसान पहुंचाए आवश्यक पोषक तत्व और ऊर्जा प्रदान करते हैं। दांतों का उपयोग अपने माता पिता को करने के लिए ना करे। 

    अथर्ववेद 10 / 1/ 29

    अ॑नागोह॒त्या वै भी॒मा कृ॑त्ये॒ मा नो॒ गामश्वं॒ पुरु॑षं वधीः। 

    यत्र॑य॒त्रासि॒ निहि॑ता॒ तत॒स्त्वोत्था॑पयामसि प॒र्णाल्लघी॑यसी भव ॥

    अर्थात : 

    गाय को स्वयं मरे बिना उसे मारना हिंसा है, गाय घोड़े और पुरुष की हत्या ना करे यह पाप को बढ़ावा देता है। हत्या करके आप हमारे बीच में जहा कहाँ भी छुपे हो, हम आपको वहां से खोजते और हटाते है। जिसके बाद तुम्हारी हालत सूखे पत्ते समान हो जाएगी, जिसका अंत में केवल चुरा होता है। 

    संवाद:

    अर्थवेद भी सभी जीवित प्राणियों के प्रति अहिंसा (अहिंसा) के सिद्धांत पर बल देता है। यह हमें याद दिलाता है कि हमें कभी भी किसी जीवित प्राणी को नुकसान नहीं पहुंचाना चाहिए चाहे वह इंसान हो या जानवर।

    4. यजुर्वेद  में मांस के बारे में क्या कहा गया है

    यजुर्वेद 36 / 18

    दृते दृँह मा मित्रस्य मा चक्षुषा सर्वाणि भूतानि समीक्षन्ताम् ।

     मित्रस्याहञ्चक्षुषा सर्वाणि भूतानि समीक्षे । मित्रस्य चक्षुषा समीक्षामहे ॥

    अर्थात : 

    हे अज्ञान और अंधकार के नाश करने वाले भगवान, मुझे मजबूत करो, सभी प्राणी मुझे मित्र की दृष्टि से देखें ऐसा उपहार दो। मैं सभी प्राणियों को मित्र की दृष्टि से देखूं और हम मित्र की दृष्टि से एक दूसरे का आदर करे ऐसी शक्ति  प्रदान करो।

    यजुर्वेद में बताये गये इस भाग में जानवरों की हत्या तथा हिंसा की भावना नजर नही आती है, बल्कि जानवरों के प्रति आदर और मित्रता की भावनाओ बढ़ावा दिया गया है। इसके आलावा यजुर्वेद भाग  6/11 में पशुओं का पालन और संरक्षण की बातो का उल्लेख किया गया है  

    5.  मांस के बारे में विज्ञान की राय 

    स्वास्थ्य के हिसाब से एक अध्ययन के अनुसार अधिकतम मांस के सेवन  से हृदय रोग, कैंसर और  मधुमेह जैसी बीमारियां हो सकती है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि मांस में  “संतृप्त वसा” (saturated Fat) अधिक  होता है, जिससे कोलेस्ट्रॉल का स्तर बढ़ जाता है और शरीर में सूजन बढ़ सकती है। 

    हालांकि, यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि कुछ प्रकार के मांस शरीर के लिए बेहद फायदेमंद भी होते है  जैसे वसायुक्त लाल मांस जिनमे गाय और सूअर का मांस शामिल है इनमे मछली के मांस के मुकाबले अतिरिक्त, मांस प्रोटीन, आयरन और विटामिन बी 12 जैसे महत्वपूर्ण पोषक तत्वों का एक अच्छा स्रोत होता है।

    विज्ञान के मुताबिक बढ़ता हुआ मांस उत्पादन यह पर्यावरण  प्रभाव में जल प्रदूषण का प्रमुख स्त्रोत है। मांस उत्पादन को बढावा देने के लिए विषारी रसायन की निर्मिती, हानिकारक टिका, प्राणी रोग, आदि कारणों की वजह से आवास में  बिमारियाँ का खतरा अधिक बढ़ रहा है और प्राकृतिक जैव विविधता को  नुकसान हो रहा है।

    आज आपने क्या सिखा ?

    जैसा की आपने "गीता में मांस खाने के बारे में क्या लिखा है" और "गरुड़ पुराण के अनुसार मांस खाना पुण्य है या पाप" इसके बारे में जाना. जिसमे मांस का सेवन प्रतिबद्ध बताया गया है, जिससे यह पता चलता है की मांस खाना यह पाप है. हलाकि "हिन्दू धर्म में मांस खाना पुण्य है या पाप" यह आपकी सोच पर निर्भर करता है की. जैसा की मनुष्य की जीवित हत्या करने पर उसे भयानक पीड़ा होती ठीक उसी प्रकार किसी भी जीवित जनवारो की हत्या होने पर उन्हें पीड़ा होती है. हलाकि, शरीर में जरुरी पोश्क्तातो की कमी दूर करने के लिए मांस का सेवन जरुरी होता है. जिसके कारन आज भी कई लोग मांस का सेवन करते है. 

    यदि आप इस पोस्ट से सहमत नही है तो कृपया इसे "वैयक्तिक भावना" पर ना ले. यह पोस्ट किसी धर्म की भावनाओं का अपमान नही करता है. तथा किसी व्यक्ति को मांस का सेवन करने से प्रतिब्धित नही करता है. आप बड़े चाव से मांस का सेवन कर सकते है.

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